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गीत लेखनी कविता -16-Jun-2024

आज दिनांक १६.६.२४ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति
.........................गीत.....................................

तनिक ग़म का साया बढ़ा दे री क़िस्मत
अभी तो होष बाक़ी है मेरा,
कुछ ऐंसा घना साया हो रात का
दूर तक नज़र न आए सवेरा।

अनेकों ग़म उठाए हैं ज़िन्दगी मे
और‌ भी अब उठाऊं ये शक्ति नहीं है,
जाने के उनके ही ग़म बहुत था
सिवा उनके तो किसी से भी भक्ति नहीं है।

मुहब्बत नहीं, इबादत की है मैंने 
मूरत एक दिल मे बिठाई है मैंने,
देवों समान पूजन किया है उनका,
किसी और के लिए सोचना भी संभव नहीं है।

लालची हैं ये दुनिया ललचाती है मुझको,
अनेक सपनो का लालच दिखाती है मुझको,
इन्सान हूं मैं, ब्रह्म रिषि तो नहीं
दुखों से विह्वल हूं मैं,पत्थर भी नहीं,
आ बचा ले मुझे डूबना चाहती हूं
डूब जाने दे मुझको बचाना नहीं

अभी ग़म का साया  बढ़ा दे जरा,
आमन्त्रित मौत को कर वो आए जरा,

ये दुनिया नहीं है अब मेरे लिए,
अलविदा है अय दुनिया सदा  के लिए।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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